Tuesday, July 12, 2011

लालीवाव मठ में गौवर्द्धन लीला व रास लीला पर झूमे श्रद्धालु

बांसवाड़ा, 12 जुलाई। लालीवाव मठ में चल रही भागवत कथा के अन्तर्गत मंगलवार को गोवर्द्धन लीला एवं रासलीला के मनोहारी दृश्यों व संवादों पर श्रद्धालु झूम उठे और घण्टे भर तक नृत्य के साथ कीर्तन एवं हरिभक्ति के संवादों पर थिरकन बनी रही।  इसी के साथ भगवान गोवर्धनधारी के सम्मुख धराए गए छप्पन भोग की झांकी विशेष आकर्षण का केन्द्र रही। इसमें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इन्द्र के मान भंग, पूतनावध, शकटासुर आदि राक्षसों का वध, माखनचोरी लीला, कालिया नागदमन आदि कई लीलाओं पर रसिक भावविभोर हो उठे।
मध्यप्रदेश से आए संगीतकार गणेशलाल शर्मा ने हारमोनियम पर ‘‘भोले नाथ आये बाबा, भोले नाथ आये, भभूति रमाये भोले नाथ आये बाबा, आशीष देने आये बाबा, सुखी रहे तेरा लाला’’ के बोल पर सुमधुर भजन प्रस्तुत किया। इस पर पूरा पाण्डाल मुग्ध हो थिरक उठा। इन्हीं संगीत कलाकारों द्वारा प्रस्तुत ‘‘तेरे लाला ने ब्रज रज खाई’ भजन पेश किया। 

लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमशरणदास महाराज ने भागवत कथा रस का पान कराते हुए विभिन्न उद्धरणों से कृष्ण की लीलाओं के महत्व का ज्ञान कराया और कथाओं के माध्यम से जीवन में भक्ति रस संचार की आवश्यकता और इसके प्रभावों को समझाया।
संत सम्मान
भागवत कथा पाण्डाल में लालीवाव मठ की ओर से मंगलवार शाम संत सम्मान समारोह हुआ। इसमें गुरु आश्रम छींछ के महंत घनश्यामदासजी महाराज तथा श्री रामद्वारा सूरजपोल बांसवाड़ा के संत श्री रामप्रकाश महाराज का सम्मान किया गया। तिलक, पुष्पहार, श्रीफल एवं शॉल से संतश्री का सम्मान सर्वश्री अरुण साकोरीकर, शांतिलाल भावसार, सत्यनारायण दोसी, सुखलाल तेली, पं. विमल भट्ट, प्रवीण भावसार आदि ने किया। संचालन शिक्षाविद् शांतिलाल भावसार ने किया। आरंभ में भागवत पोथी एवं कथावाचक महंत श्री हरिओमशरणदास महाराज का स्वागत मुख्य यजमान अरुण साकोरीकर  एवं श्रीमती आशा साकोरीकर, महेश राणा एवं सुन्दरलाल गेहलोत ने किया।

शिवभक्ति से सब कुछ संभव - महंत हरिओमशरणदास
लालीवाव मठ में प्रदोष महापूजा
बांसवाड़ा, 12 जुलाई। लालीवाव मठ के महंत श्री हरिओमशरणदासजी महाराज ने कहा है कि शिव की उपासना से सभी ग्रहों के अनिष्ट दूर होते हैं और जिस पर शिवजी की कृपा होती है उसके सारे मनोरथ स्वतः सिद्ध होने लगते हैं।
महंतश्री ने लालीवाव मठ में प्रदोष उत्सव के अन्तर्गत उपस्थित शिवभक्तों के मध्य प्रवचन करते हुए यह उद्गार व्यक्त किए। प्रदोष के मौके पर शिवालय में विशेष पूजा-अर्चना एवं अनुष्ठान किए गए तथा पण्डितों के समूहों ने रूद्राभिषेक किया।
लालीवाव पीठाधीश्वर ने अपने प्रवचन में शिवमहिमा पर विस्तार से परिचय दिया और भक्तों से शिव उपासना के लिए संकल्पित होकर जीवन निर्माण का उपदेश दिया।
उन्होंने संतों और गुरुओं के सान्निध्य में पहुंच कर साधना एवं अभ्यास सीखने का आह्वान प्राणीमात्र से किया और कहा कि इसी से भवसागर से व्यक्ति तर सकता है।
महंतश्री ने कहा कि ब्रह्माजी ने सृष्टि निर्माण से पूर्व पहले ‘काल’ अर्थात समय का निर्माण किया और उसके बाद ही मानसिक सृष्टि को उत्पन्न किया तथा ऋषियों को जन्म दिया।
ज्ञान को सदैव प्राप्त करने लायक बताते हुए उन्होंने कहा कि ज्ञान किसी से भी प्राप्त हो, ग्रहण कर लेना चाहिए। चाहे ज्ञान देने वाला अपने से छोटा हो या बड़ा। इसी प्रकार जीवन भर अच्छाइयों को ही ग्रहण करना चाहिए। मनुष्य को अपने या किसी दूसरे के बारे में भी कहीं कोई बुराई सुनने मिले तो उसे पूरी तरह भूल जाना चाहिए।

लालीवाव में बही भजन सरिताएं
मध्यप्रदेश के संगीत समूह ने मचायी धूम
बांसवाड़ा, 12 जुलाई/
लालीवाव मठ में गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के अन्तर्गत मध्यप्रदेश के संगीत दल ने लोकवाद्यों की धुनों पर भजन पेश करते हुए भक्तों को आनंदित कर दिया। श्रीमद्भागवत के विभिन्न प्रसंगों के बीच सटीक धुन, लय और तानों पर भजन व कीर्तन लहरियों के माध्यम से कलाकारों ने भागवत रस के माधुर्य को बहुगुणित कर दिया।
इसमें गायककार गणेश शर्मा(सरसी) द्वारा मंगलवार को ऑरगन पर नागदा के मांगीलाल शर्मा एवं ढोलक पर मन्दसौर के ईश्वर भाई की संगत पर पूरा माहौल सांगीतिक होता रहा।
रूद्र ऋचाओं से गूंजा लालीवाव मठ परिसर
बांसवाड़ा, 12 जुलाई/प्रदोष अवसर पर लालीवाव मठ में शिवपूजा महानुष्ठान हुआ। इसमें मठ के शिवालय में पण्डितों के समूह ने विधिविधान के साथ  रूद्राभिषेक किया। इनमें मध्यप्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आए शिव साधकों पं. घनश्याम जोशी(मनासा), पं. समृत मेहता एवं पं. मनोहर मेहता (खजूरी, आंत्री), पं. ज्वालाप्रसाद शर्मा (रठाना, मंदसौर), पं. सुनिल शर्मा(उज्जैन), पं. कन्हैयालाल भट्ट(अडमलीया), पं. श्यामलाल तिवारी(कनेरा) आदि ने राजोपचार से शिव परिवार का पूजन किया और सस्वर रूद्राभिषेक से पूरा परिसर गूंजा दिया।
मंगलवार को पार्थिव शिवलिंगांे से मंगल यंत्र बनाकर मंगल पूजा अर्चना की गई।

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