Sunday, July 10, 2011

ईश्वर को पाने के लिए दुष्टों से दूर रहें- महंत हरिओमशरणदास महाराज

ईश्वर को पाने के लिए दुष्टों से दूर रहें- महंत हरिओमशरणदास महाराज
लालीवाव में श्रीमद्भागवतकथा में उमड़ा श्रद्धा का ज्वार
        बांसवाड़ा 10 जुलाई।
        श्रीमद्भागवतमर्मज्ञ संत श्री हरिओमशरणदास महाराज ने कहा है कि ईश्वर का अपने हृदय में निवास स्थिर करने के लिए ईश्वरीय गुणों को आत्मसात करना जरूरी है। अश्वत्थामा की कथा का उद्धरण देते हुए महाराजश्री ने कहा कि पाण्डवों के पुत्रों का वध तक कर देने वाले अश्वत्थामा को द्रौपदी ने ब्राह्मण पुत्र एवं गुरु पुत्र हो जाने से क्षमा कर दिया और दया को अपनाया, इसीलये भगवान की वह कृपा पात्र बनी रही।



       
उन्होंने कहा कि जीवन के प्रत्येक क्षण में भगवान का स्मरण बना रहना चाहिए तभी जीवनयात्रा की सफलता संभव है। दुःखों में ही भगवान को याद करने और सुखों में भूल जाने की प्रवृत्ति ही वह कारक है जिसकी वजह से आत्मीय आनंद छीन जाता है। कुंती ने इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण से मांगा कि जीवन में सदैव दुःख ही दुःख मिलें ताकि भगवान का स्मरण दिन-रात बना रहे।
        पापकर्म में रत और पापी व्यक्ति के अन्न को त्यागने पर बल देते हुए लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमशरणदास महाराज ने पितामह भीष्म और द्रौपदी के संवाद का उदाहरण दिया और कहा कि स्वयं पितामह ने स्पष्ट किया था कि पापी दुर्योधन का अन्न खाने से उनकी मति भ्रष्ट हो गई थी। इसलिए जो व्यक्ति दुष्ट है, पापी है उससे संबंध होने का अर्थ है भगवान से दूरी, ज्ञान और विवेक से दूरी। ऐसे दुष्ट व्यक्तियों का संग किसी को भी, कभी भी डूबो दे सकता है। सज्जनों को चाहिए कि दुष्ट व्यक्तियों के संग और व्यवहार से दूरी बनाए रखे।
        महंतश्री ने कहा कि पापियों के संग में मुफ्त में खाने-पीने से लेकर सारी सुविधाएं तक अच्छी लगती हैं लेकिन जीवन के लक्ष्य से मनुष्य भटक जाता है और यह विवेक तग जगता है जब संसार से विदा होने का समय आता है। इसलिए अभी से सचेत हो जाओ और दुष्टांें-पापियों से दूर रहकर अच्छे काम करो, ईश्वर का चिंतन करो।
        भजनों ने किया मुग्ध
        श्रीमद् भागवत कथा के अन्तर्गत ऑरगनवादक श्री गणेशलाल शर्मा एवं दल द्वारा वाद्यों की संगत पर रोजाना प्रस्तुत किए जा रहे भजन श्रद्धालुओं को मुग्ध करने लगे हैं। रविवार को शर्मा ने ‘‘ रामचरण अनुराग है, तेरी बिगड़ी बनेगी..’’, तथा ‘‘मिलता है सच्चा सुख केवल भगवान तुम्हारे चरणों में ’’ की सुमधुर गायकी पर रसिक श्रोता झूम उठे। संचालन शांतिलाल भावसार ने किया। आरंभ में मुख्य कथा यजमान  अरुण साकोरीकरण एवं आशा साकोरीकर तथा सह यजमान महेश राणा एवं राजेन्द्र राणा तथा परिजनों ने श्रीमद्भागवत की विधि विधान से पूजा-अर्चना की और आरती उतारी।
        पार्थिव लिंगों से बना सूर्य यंत्र
        लालीवाव मठ में चल रहे आठ दिवसीय गुरुपूर्णिमा महोत्सव के अन्तर्गत रविवार को मिट्टी के बने पार्थेश्वर शिवलिंगों से निर्मित सूर्य यंत्र और अन्य देव प्रतिमाओं एवं यंत्रों के पूजन के लिए श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहा। पं. ललित पाठक के सान्निध्य में साधकों के समूहों ने शनिवार को धनुषाकार शनि यंत्र तथा रविवार को सूर्य यंत्र का निर्माण किया। 

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