Saturday, July 9, 2011

मनुष्य जन्म के लक्ष्य का चिंतन करें - हरिओमशरणरदास महाराज

मनुष्य जन्म के लक्ष्य का चिंतन करें - हरिओमशरणरदास महाराज
लालीवाव मठ में श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव
बांसवाड़ा, 9 जुलाई/‘‘मनुष्य की दुर्लभ योनि की प्राप्ति का लक्ष्य प्रभु की भक्ति और साक्षात्कार है। हर मनुष्य को अपने जन्म लेने के उद्देश्य को समझकर कार्य करना होगा। लक्ष्य प्राप्ति के बिना जीवन निरर्थक है।’’
यह उद्गार ऐतिहासिक लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन शनिवार को व्यासपीठ से लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमशरणदास महाराज ने कथाअमृतवृष्टि करते हुए व्यक्त किए।



उन्होंने कहा कि भारतभूमि पर जन्म लेना दुर्लभ है, और ऐसे में मनुष्य योनि का संयोग मणि-कांचन योग है। भारत भगवान की अवतार भूमि है। कृष्ण भक्ति, शास्त्रों का श्रवण, अध्ययन-मनन आदि से दैवत्व और दिव्यत्व प्राप्त होता है। शास्त्रों में किसी की कथा का वर्णन नहीं है बल्कि उनमें सिद्धान्त हैं, लक्ष्य हैं, और वह है भगवान का अहर्निश स्मरण करना।
महाराजश्री ने कहा कि भगवान का अवतार सत्य की रक्षा के लिए होता है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम एवं वृन्दावनबिहारी कृष्ण भगवान के अवतारों से हमें पिण्ड से ब्रह्माण्ड तक का सारा ज्ञान हो जाता है।
सत्संग से संवारे जीवन को
सत्संग को जीवन निर्माण का अनिवार्य अंग बताते हुए उन्होंने कहा कि जहां कहीं उपलब्ध हो, सत्संग का लाभ लेना चाहिए। सत्संग संतों के बीच ही मिलता है। सत्संग का मौका जीवन में कभी नहीं गंवाना चाहिए। इसी से नए जीवन का उदय होता है।
आरंभ में मुख्य यजमान अरुण साकोरीकर एवं श्रीमती आशा साकोरीकर तथा सह यजमान महेश राणा एवं राजेन्द्र राणा तथा भक्तों दयाराम सिंधी, गणेशलाल सोनी, नीरज आदि ने भागवत की पूजा की तथा व्यासपीठ का स्वागत किया।

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