Monday, July 11, 2011

लालीवाव में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव में झूमे श्रद्धालु

लालीवाव में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव में झूमे श्रद्धालु
कान्हा की लीलाओं ने उमड़ाया अपार आनंद रस
          बांसवाड़ा, 11 जुलाई। सदियों से लोक आस्था के केन्द्र ऐतिहासिक लालीवाव मठ में सोमवार को श्रीमद्भागवत कथा के अन्तर्गत श्रीकृष्ण जन्मोत्सव एवं बाल लीलाओं ने श्रद्धालुओं को आनंद रसों की बारिश से नहला दिया। बड़ी संख्या में उमड़े श्रद्धालु नर-नारी कान्हा की लीलाओं पर मंत्र मुग्ध हो उठे। श्री कृष्ण जन्मोत्सव के उल्लास में श्रद्धालुओं ने जमकर भजन-कीर्तनों पर झूमते हुए नृत्य का आनंद लिया।





          घण्टे भर से अधिक समय तक श्री कृष्ण जन्मोल्लास में बधाइयां गायी गई और महिलाओं ने मंगल गीतों के साथ भगवान के अवतरण पर प्रसन्नता व्यक्त की। श्रीमद्भागवतकथा के मुख्य यजमान जाने-माने भौतिकशास्त्री श्रीद अरुण साकोरीकर एवं श्रीमती आशा साकोरीकर के साथ ही सह-यजमान सर्वश्री महेश एवं राजेन्द्र राणा ने श्रीमद्भागवत का पूजन किया और आरती उतारी। व्यासपीठ पर विराजित महन्तश्री का पुष्पहारों से स्वागत श्रद्धालुओं की ओर से सर्वश्री रतनलाल शर्मा, अनोखीलाल पटेल एवं शांतिलाल भावसार आदि ने किया।
          जैसे ही श्रीकृष्ण जन्म की कथा आरंभ हुई, जन्मोत्सव की बाल लीलाएं साकार हो उठी और पूरा पाण्डाल ‘‘नंद के आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की, हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैयालाल की।’’ से गूंज उठा।
          गुरुपूर्णिमा महोत्सव के अन्तर्गत चल रही भागवत कथा के चौथे दिन श्रीमद्भागवतमर्मज्ञ संत श्री हरिओमशरणदास महाराज ने श्रीकृष्ण जन्म आख्यान का परिचय दिया और भगवान श्रीकृष्ण को जगत का गुरु तथा भगवान श्री शिव को जगत का नाथ कहा गया है।  इनके आराधन-भजन से वह सब कुछ प्राप्त हो सकता है जो एक मनुष्य पाना चाहता है।
          उन्होंने कहा कि प्रभु की प्राप्ति किसी भी अवस्था में हो सकती है। इसके लिए जात-पात, नर-नारी, उम्र आदि का कोई भेद नहीं है। उमर इसमें कहीं आड़े नहीं आती। इसके लिए कथा और सत्संग सहज सुलभ मार्ग हैं। कथा का उद्देश्य हमेशा प्रभु को प्राप्त करना होता है।
भगवान को पाने के लिए आसक्ति के परित्याग पर जोर देते हुए महंतश्री ने कहा कि आसक्ति छोड़कर परमात्मा में मन लगाना चाहिए।
          लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमशरणदास महाराज ने   जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति के लिए कर्मों के क्षय को अनिवार्य शर्त बताते हुए कहा कि जब तक कर्म है, तब तक आवागमन का चक्र बना रहता है। कर्म को समाप्त करने पर ही जन्म-मरण का बंधन समाप्त हो सकता है।
          महंतश्री ने कहा कि ईश्वरीय विधान को नहीं मानने वाले, उल्लंघन व विरोध करने वाले लोग दूसरे जन्म में कष्ट पाते हैं ओर नरक की योनि भुगतनी पड़ती है।
          भक्त प्रह्लाद का उदाहरण देते हुए महंतश्री हरिओमशरणदास महाराज ने कहा कि उसे माँ के गर्भ से ही ईश्वरीय संस्कारों का बोध था और इसीलिये उसने पिता को भी सर्वव्यापी प्रभु के बारे में बताया। यही सर्वव्यापी ईश्वर पत्थर के खंभे से प्रकट हुआ।
          लालीवाव पीठाधीश्वर ने व्यास पीठ से अपने उद्बोधन में कहा कि संसार भर में भारतभूमि सर्वश्रेष्ठ है। यह धर्म भूमि, कर्मभूमि है जहाँ ऋषि-मुनियों ने जन्म लेकर अपनी तपस्या, सद्कर्मों, जन एवं ईश्वर स्मरण कर मोक्ष प्राप्त किया। इसी भूमि पर अवतरण के लिए देवता भी लालालित रहते हैं।

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