Friday, July 15, 2011

लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव धूमधाम से मना,

लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव धूमधाम से मना,
दिन भर लगा रहा भक्तों का तांता

बांसवाड़ा, 15 जुलाई/गुरु पूर्णिमा महोत्सव ऐतिहासिक लालीवाव मठ में शुक्रवार को धूमधाम से मनाया गया। भोर में गुरु पादुका पूजन अनुष्ठान हुआ। इसमें लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमशरणदास महाराज ने मठ के पूर्ववर्ती महंतों की छत्री, चरणपादुकाओं तथा मूर्तियों का पूजन किया और आशीर्वाद प्राप्त किया।
 

महंत नारायणदास महाराज की छतरी पर गुरु पादुकापूजन कार्यक्रम में लालीवाव की शिष्य परम्परा के बड़ी संख्या में अनुयायियों और भक्तों ने हिस्सा लिया और विविध उपचारों के साथ गुरु पूजन किया।
लालीवाव मठ में शुक्रवार को दिन भर भारी भीड़ लगी रही। भक्तों ने लालीवाव के महंत हरिओमशरणदास महाराज को पुष्पहार पहनाकर पूजन किया तथा आशीर्वाद प्राप्त किया।
दिन में दीक्षा महोत्सव हुआ। इसमें बड़ी संख्या में नव दीक्षार्थियों ने दीक्षा विधान के साथ लालीवाव महंत से दीक्षा प्राप्त की और नवजीवन का संकल्प ग्रहण किया। तीन घण्टे चले इस दीक्षा महोत्सव में दीक्षार्थियों का तांता बंधा रहा। विद्या निकेतन तथा अन्य विद्यालयों के विद्यार्थियों ने भी महंतश्री के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद पाया। शिष्यों ने पीठाधीश्वर की आरती उतारी और आशीर्वाद प्राप्त किया।
दिन भर लालीवाव धाम पर भजन-कीर्तनों की धूम बनी रही। लालीवाव धाम के प्रधान मन्दिर पद्मनाथ में भगवान के श्रीविग्रहों का मनोहारी श्रृंगार कलाकार दीपक तेली द्वारा किया गया। इनमें भगवान विष्णु के विराट स्वरूप और गीता ज्ञान उपदेश के दृश्यों की जीवंत झांकी को देखने श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहा।
राष्ट्रधर्म सर्वोपरि
इस मौके पर शिष्यों को अपने वार्षिक प्रवचन में लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमशरणदास ने कहा कि राष्ट्र को सर्वोपरि मानकर कार्य करें। समाज-जीवन के जिस किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हों वहां देशभक्ति और देश के विकास की भावना को सामने रखकर दिव्य जीवन व्यवहार के साथ कार्य करें और ईश्वर द्वारा प्रदत्त क्षमताओं का भरपूर उपयोग मानवता के हित में और मनुष्य जीवन के चरम लक्ष्य की प्राप्ति में करें।

Thursday, July 14, 2011

लालीवाव मठ में यज्ञ पूर्णाहुति से सम्पन्न भागवत कथा सप्ताह


लालीवाव मठ में यज्ञ पूर्णाहुति से सम्पन्न भागवत कथा सप्ताह
पार्थेश्वर चिंतामणि रूद्रार्चन महापूजा सम्पन्न
बांसवाड़ा, 14 जुलाई।

बांसवाड़ा के लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में सात दिनों से चली आ रही श्रीमद्भागवत कथा गुरुवार शाम यज्ञ पूर्णाहुति के साथ सम्पन्न हो गई।
इसके साथ ही चिंतामणि पार्थिवशिवलिंग महापूजा अनुष्ठान भी रूद्रार्चन यज्ञ के साथ सम्पन्न हो गया।
                                                                                                                                                                                       मठ परिसर में वैदिक ऋचाओं और पौराणिक मंत्रों के साथ लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमशरणदास महाराज के सान्निध्य तथा प्रसिद्ध कर्मकाण्डी पं. इच्छाशंकर जोशी के आचार्यत्व में भागवत यज्ञ हुआ। इसमें मुख्य यजमान भौतिक शास्त्री अरुण साकोरीकर, श्रीमती आशा साकोरीकर, सह यजमान महेश राणा एवं राजेन्द्र टेलर आदि ने श्रीफल से पूर्णाहुति अर्पित की। इस दौरान पं. जयप्रकाश पण्ड्या, लक्ष्मीनारायण सुथार, निमेष मेहता आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया।

चिंतामणि पार्थेश्वर महापूजा विधान


इस अवसर पर तारापुर से आए साधकों भंवरलाल एवं श्रीमती धापू बाई तथा लालीवाव मठ के शिष्यों ने विधिविधान के साथ चिंतामणि पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनका पूजन किया। गुरुवार को पं. जयप्रकाश पण्ड्या तथा अन्य शिव उपासकों ने रूद्रार्चन ऋचाओं के साथ पूजन-अर्चन किया।
मिट्टी के शिवलिंगों से विभिन्न मनोहारी यंत्र तथा देवी-देवताओं की आकर्षक प्रतिमाओं का सृजन किया गया।
भागवत कथा में उमड़ा श्रद्धा का ज्वार
लालीवाव मठ में श्रीमद्भागवत कथा की पूर्णाहुति के अवसर पर श्रद्धालुओं का ज्वार उमड़ आया और विभिन्न कथाओं को सुनते हुए श्रद्धालु कई-कई बार कीर्तनों पर झूम उठे।
कथा के समापन पर मुख्य यजमान तथा सह यजमानों ने व्यासपीठ से कथावाचन कर रहे लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमशरणदास महाराज का साफा बांध कर तथा श्रीफल एवं भेंट अर्पित कर सम्मान किया और आशीर्वाद प्राप्त किया।
लालीवाव मठ परिवार के सदस्यों ने भी महंतश्री का स्वागत सत्कार किया।

इस अवसर पर भागवत समिति, श्री सिद्धि विनायक गणेश भक्त मण्डल की ओर से नटवरलाल सागवाड़िया, परमेश्वरलाल नागर, विनोद शाह, देवेन्द्र शाह, जैजेवन्ती वैष्णव, डॉ. दीपक द्विवेदी आदि ने शॉल, पुष्पहारों तथा श्रीफलों से महंतश्री का स्वागत अभिनंदन किया। संचालन शिक्षाविद् शांतिलाल भावसार ने किया।












लालीवाव मठ में गुरु पूर्णिमा महोत्सव शुक्रवार को

बांसवाड़ा, 14 जुलाई/सदियों से लोक आस्था के धाम रहे ऐतिहासिक लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव शुक्रवार को धूमधाम से मनाया जाएगा। इसकी सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गई हैं।
लालीवाव मठ में गुरु पूर्णिमा महोत्सव के अनुष्ठान शुक्रवार को भोर में प्रातः पांच बजे गुरुगादी पूजन से शुरू होंगे। इसके बाद मध्याह्न 12 से दोपहर बाद 3 बजे तक दीक्षा दी जाएगी। शाम सात बजे भजन-कीर्तन और सत्संग होगा तथा रात आठ बजे महाआरती के साथ ही महोत्सव का समापन हो जाएगा।

Wednesday, July 13, 2011

लालीवाव मठ में श्रीमद्भागवत सप्ताह पूर्णाहुति गुरुवार शाम

तुलसी विवाह के प्रसंगों ने बिखेरी मंगल लहरियां
बांसवाड़ा, 13 जुलाई/गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में यहां लालीवाव मठ में चल रही श्रीमद्भागवत कथा की पूर्णाहुति 14 जुलाई गुरुवार शाम छह बजे होगी।


इससे पूर्व दोपहर एक से पांच बजे तक लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमशरणदास महाराज द्वारा कथा की जाएगी। इसके उपरान्त पार्थिव शिवलिंगों का पूजन एवं आरती होगी। इन सारे अनुष्ठानों के बाद शाम छह बजे श्रीमद्भागवत पूर्णाहुति यज्ञ होगा।


बुधवार को भागवत कथा में तुलसी विवाह और रुक्मणी विवाह के मनोहारी प्रसंगों ने आनंद रसों का ज्वार उमड़ा दिया। बड़ी संख्या में मौजूद भक्तों ने भजन-कीर्तनों पर झूम-झूमकर नृत्य का आनंद लिया।
श्रद्धालु महिलाओं ने विवाह गीत और मंगल गीत गाकर विवाह रस्मों का दिग्दर्शन कराते हुए मंत्र मुग्ध कर दिया।दुल्हे के रूप में भगवान श्रीकृष्ण की सजी-धजी बारात श्री पद्मनाथ मन्दिर से निकली और भागवत कथा स्थल पर विवाह मण्डप पहुंची जहां दुल्हन के रूप में तुलसी मैया के वधू पक्ष के लोगों ने अक्षतोें की बरसात कर वेवण-वैवाइयों और बारात का जमकर स्वागत सत्कार किया।
जाने-माने कर्मकाण्डी पं. इच्छाशंकर जोशी एवं पं. घनश्याम जोशी के आचार्यत्व में तुलसी विवाह विधि-विधान से पूरा हुआ। भगवान के बारातियों के रूप में लालीवाव की शिष्य परम्परा के प्रमुख भक्तों दीपक तेली, विमल भट्ट, लोकेन्द्र भट्ट, सत्यनारायण दोसी, शांतिलाल भावसार, सुन्दरलाल गहलोत, महेश राणा, सुखलाल तेली, प्रवीण गुप्ता आदि ने भगवान श्री कृष्ण को कांधे पर बिठाकर विवाह मण्डप लाए। तुलसी मैया की ओर से आयोजक परिवार ने सभी का स्वागत किया।
भवई नृत्य ने मन मोहा
श्रीमद्भागवत कथा में बुधवार को भवई कलाकार सुरेशचन्द्र रतलाम वालों द्वारा प्रस्तुत भवई नृत्य आकर्षण का खास केन्द्र रहा। उन्होंने सर पर मटकियां रखकर कान्हा और गोपियों के गीत गाते हुए नृत्य पेश करते हुए मन मोह लिया। बाद में भारत माता मन्दिर के महंत श्री रामस्वरूप महाराज ने भवई कलाकार सुरेशचन्द्र का शॉल ओढ़ा कर सम्मान किया। लालीवाव भक्त मण्डल की ओर से समाजसेवी रमेश माली ने लालीवाव पीठाधीश्वर का साफा बांध कर अभिनंदन किया। कथा के आरंभ में मुख्य यजमान भौतिक शास्त्री अरुण साकोरीकर एवं श्रीमती आशा साकोरीकर, महेश राणा, रसायनविद गणेशचन्द्र मुकाती, गिरीशचन्द्र भावसार एवं सुन्दरलाल गेहलोत आदि ने व्यासपीठ तथा महतंश्री का स्वागत किया।
संचालन शिक्षाविद् शांतिलाल भावसार ने किया।
मिट्टी के शिवलिंगों का हुआ पूजन
इससे पूर्व भागवत कथा के छठे दिन बुधवार को दिन में चिंतामणि पार्थिव शिवलिंग निर्माण एवं पूजन का महानुष्ठान हुआ। इसमें पमा पहलवान, नवनीत पटेल आदि ने वैदिक ऋचाओं और शैव मंत्रों के साथ मृतिका शिवलिंगों का प्राचीन विधि-विधान से पूजन किया।

Tuesday, July 12, 2011

लालीवाव मठ में गौवर्द्धन लीला व रास लीला पर झूमे श्रद्धालु

बांसवाड़ा, 12 जुलाई। लालीवाव मठ में चल रही भागवत कथा के अन्तर्गत मंगलवार को गोवर्द्धन लीला एवं रासलीला के मनोहारी दृश्यों व संवादों पर श्रद्धालु झूम उठे और घण्टे भर तक नृत्य के साथ कीर्तन एवं हरिभक्ति के संवादों पर थिरकन बनी रही।  इसी के साथ भगवान गोवर्धनधारी के सम्मुख धराए गए छप्पन भोग की झांकी विशेष आकर्षण का केन्द्र रही। इसमें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इन्द्र के मान भंग, पूतनावध, शकटासुर आदि राक्षसों का वध, माखनचोरी लीला, कालिया नागदमन आदि कई लीलाओं पर रसिक भावविभोर हो उठे।
मध्यप्रदेश से आए संगीतकार गणेशलाल शर्मा ने हारमोनियम पर ‘‘भोले नाथ आये बाबा, भोले नाथ आये, भभूति रमाये भोले नाथ आये बाबा, आशीष देने आये बाबा, सुखी रहे तेरा लाला’’ के बोल पर सुमधुर भजन प्रस्तुत किया। इस पर पूरा पाण्डाल मुग्ध हो थिरक उठा। इन्हीं संगीत कलाकारों द्वारा प्रस्तुत ‘‘तेरे लाला ने ब्रज रज खाई’ भजन पेश किया। 

लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमशरणदास महाराज ने भागवत कथा रस का पान कराते हुए विभिन्न उद्धरणों से कृष्ण की लीलाओं के महत्व का ज्ञान कराया और कथाओं के माध्यम से जीवन में भक्ति रस संचार की आवश्यकता और इसके प्रभावों को समझाया।
संत सम्मान
भागवत कथा पाण्डाल में लालीवाव मठ की ओर से मंगलवार शाम संत सम्मान समारोह हुआ। इसमें गुरु आश्रम छींछ के महंत घनश्यामदासजी महाराज तथा श्री रामद्वारा सूरजपोल बांसवाड़ा के संत श्री रामप्रकाश महाराज का सम्मान किया गया। तिलक, पुष्पहार, श्रीफल एवं शॉल से संतश्री का सम्मान सर्वश्री अरुण साकोरीकर, शांतिलाल भावसार, सत्यनारायण दोसी, सुखलाल तेली, पं. विमल भट्ट, प्रवीण भावसार आदि ने किया। संचालन शिक्षाविद् शांतिलाल भावसार ने किया। आरंभ में भागवत पोथी एवं कथावाचक महंत श्री हरिओमशरणदास महाराज का स्वागत मुख्य यजमान अरुण साकोरीकर  एवं श्रीमती आशा साकोरीकर, महेश राणा एवं सुन्दरलाल गेहलोत ने किया।

शिवभक्ति से सब कुछ संभव - महंत हरिओमशरणदास
लालीवाव मठ में प्रदोष महापूजा
बांसवाड़ा, 12 जुलाई। लालीवाव मठ के महंत श्री हरिओमशरणदासजी महाराज ने कहा है कि शिव की उपासना से सभी ग्रहों के अनिष्ट दूर होते हैं और जिस पर शिवजी की कृपा होती है उसके सारे मनोरथ स्वतः सिद्ध होने लगते हैं।
महंतश्री ने लालीवाव मठ में प्रदोष उत्सव के अन्तर्गत उपस्थित शिवभक्तों के मध्य प्रवचन करते हुए यह उद्गार व्यक्त किए। प्रदोष के मौके पर शिवालय में विशेष पूजा-अर्चना एवं अनुष्ठान किए गए तथा पण्डितों के समूहों ने रूद्राभिषेक किया।
लालीवाव पीठाधीश्वर ने अपने प्रवचन में शिवमहिमा पर विस्तार से परिचय दिया और भक्तों से शिव उपासना के लिए संकल्पित होकर जीवन निर्माण का उपदेश दिया।
उन्होंने संतों और गुरुओं के सान्निध्य में पहुंच कर साधना एवं अभ्यास सीखने का आह्वान प्राणीमात्र से किया और कहा कि इसी से भवसागर से व्यक्ति तर सकता है।
महंतश्री ने कहा कि ब्रह्माजी ने सृष्टि निर्माण से पूर्व पहले ‘काल’ अर्थात समय का निर्माण किया और उसके बाद ही मानसिक सृष्टि को उत्पन्न किया तथा ऋषियों को जन्म दिया।
ज्ञान को सदैव प्राप्त करने लायक बताते हुए उन्होंने कहा कि ज्ञान किसी से भी प्राप्त हो, ग्रहण कर लेना चाहिए। चाहे ज्ञान देने वाला अपने से छोटा हो या बड़ा। इसी प्रकार जीवन भर अच्छाइयों को ही ग्रहण करना चाहिए। मनुष्य को अपने या किसी दूसरे के बारे में भी कहीं कोई बुराई सुनने मिले तो उसे पूरी तरह भूल जाना चाहिए।

लालीवाव में बही भजन सरिताएं
मध्यप्रदेश के संगीत समूह ने मचायी धूम
बांसवाड़ा, 12 जुलाई/
लालीवाव मठ में गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के अन्तर्गत मध्यप्रदेश के संगीत दल ने लोकवाद्यों की धुनों पर भजन पेश करते हुए भक्तों को आनंदित कर दिया। श्रीमद्भागवत के विभिन्न प्रसंगों के बीच सटीक धुन, लय और तानों पर भजन व कीर्तन लहरियों के माध्यम से कलाकारों ने भागवत रस के माधुर्य को बहुगुणित कर दिया।
इसमें गायककार गणेश शर्मा(सरसी) द्वारा मंगलवार को ऑरगन पर नागदा के मांगीलाल शर्मा एवं ढोलक पर मन्दसौर के ईश्वर भाई की संगत पर पूरा माहौल सांगीतिक होता रहा।
रूद्र ऋचाओं से गूंजा लालीवाव मठ परिसर
बांसवाड़ा, 12 जुलाई/प्रदोष अवसर पर लालीवाव मठ में शिवपूजा महानुष्ठान हुआ। इसमें मठ के शिवालय में पण्डितों के समूह ने विधिविधान के साथ  रूद्राभिषेक किया। इनमें मध्यप्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आए शिव साधकों पं. घनश्याम जोशी(मनासा), पं. समृत मेहता एवं पं. मनोहर मेहता (खजूरी, आंत्री), पं. ज्वालाप्रसाद शर्मा (रठाना, मंदसौर), पं. सुनिल शर्मा(उज्जैन), पं. कन्हैयालाल भट्ट(अडमलीया), पं. श्यामलाल तिवारी(कनेरा) आदि ने राजोपचार से शिव परिवार का पूजन किया और सस्वर रूद्राभिषेक से पूरा परिसर गूंजा दिया।
मंगलवार को पार्थिव शिवलिंगांे से मंगल यंत्र बनाकर मंगल पूजा अर्चना की गई।

Monday, July 11, 2011

लालीवाव में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव में झूमे श्रद्धालु

लालीवाव में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव में झूमे श्रद्धालु
कान्हा की लीलाओं ने उमड़ाया अपार आनंद रस
          बांसवाड़ा, 11 जुलाई। सदियों से लोक आस्था के केन्द्र ऐतिहासिक लालीवाव मठ में सोमवार को श्रीमद्भागवत कथा के अन्तर्गत श्रीकृष्ण जन्मोत्सव एवं बाल लीलाओं ने श्रद्धालुओं को आनंद रसों की बारिश से नहला दिया। बड़ी संख्या में उमड़े श्रद्धालु नर-नारी कान्हा की लीलाओं पर मंत्र मुग्ध हो उठे। श्री कृष्ण जन्मोत्सव के उल्लास में श्रद्धालुओं ने जमकर भजन-कीर्तनों पर झूमते हुए नृत्य का आनंद लिया।





          घण्टे भर से अधिक समय तक श्री कृष्ण जन्मोल्लास में बधाइयां गायी गई और महिलाओं ने मंगल गीतों के साथ भगवान के अवतरण पर प्रसन्नता व्यक्त की। श्रीमद्भागवतकथा के मुख्य यजमान जाने-माने भौतिकशास्त्री श्रीद अरुण साकोरीकर एवं श्रीमती आशा साकोरीकर के साथ ही सह-यजमान सर्वश्री महेश एवं राजेन्द्र राणा ने श्रीमद्भागवत का पूजन किया और आरती उतारी। व्यासपीठ पर विराजित महन्तश्री का पुष्पहारों से स्वागत श्रद्धालुओं की ओर से सर्वश्री रतनलाल शर्मा, अनोखीलाल पटेल एवं शांतिलाल भावसार आदि ने किया।
          जैसे ही श्रीकृष्ण जन्म की कथा आरंभ हुई, जन्मोत्सव की बाल लीलाएं साकार हो उठी और पूरा पाण्डाल ‘‘नंद के आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की, हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैयालाल की।’’ से गूंज उठा।
          गुरुपूर्णिमा महोत्सव के अन्तर्गत चल रही भागवत कथा के चौथे दिन श्रीमद्भागवतमर्मज्ञ संत श्री हरिओमशरणदास महाराज ने श्रीकृष्ण जन्म आख्यान का परिचय दिया और भगवान श्रीकृष्ण को जगत का गुरु तथा भगवान श्री शिव को जगत का नाथ कहा गया है।  इनके आराधन-भजन से वह सब कुछ प्राप्त हो सकता है जो एक मनुष्य पाना चाहता है।
          उन्होंने कहा कि प्रभु की प्राप्ति किसी भी अवस्था में हो सकती है। इसके लिए जात-पात, नर-नारी, उम्र आदि का कोई भेद नहीं है। उमर इसमें कहीं आड़े नहीं आती। इसके लिए कथा और सत्संग सहज सुलभ मार्ग हैं। कथा का उद्देश्य हमेशा प्रभु को प्राप्त करना होता है।
भगवान को पाने के लिए आसक्ति के परित्याग पर जोर देते हुए महंतश्री ने कहा कि आसक्ति छोड़कर परमात्मा में मन लगाना चाहिए।
          लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमशरणदास महाराज ने   जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति के लिए कर्मों के क्षय को अनिवार्य शर्त बताते हुए कहा कि जब तक कर्म है, तब तक आवागमन का चक्र बना रहता है। कर्म को समाप्त करने पर ही जन्म-मरण का बंधन समाप्त हो सकता है।
          महंतश्री ने कहा कि ईश्वरीय विधान को नहीं मानने वाले, उल्लंघन व विरोध करने वाले लोग दूसरे जन्म में कष्ट पाते हैं ओर नरक की योनि भुगतनी पड़ती है।
          भक्त प्रह्लाद का उदाहरण देते हुए महंतश्री हरिओमशरणदास महाराज ने कहा कि उसे माँ के गर्भ से ही ईश्वरीय संस्कारों का बोध था और इसीलिये उसने पिता को भी सर्वव्यापी प्रभु के बारे में बताया। यही सर्वव्यापी ईश्वर पत्थर के खंभे से प्रकट हुआ।
          लालीवाव पीठाधीश्वर ने व्यास पीठ से अपने उद्बोधन में कहा कि संसार भर में भारतभूमि सर्वश्रेष्ठ है। यह धर्म भूमि, कर्मभूमि है जहाँ ऋषि-मुनियों ने जन्म लेकर अपनी तपस्या, सद्कर्मों, जन एवं ईश्वर स्मरण कर मोक्ष प्राप्त किया। इसी भूमि पर अवतरण के लिए देवता भी लालालित रहते हैं।

Sunday, July 10, 2011

ईश्वर को पाने के लिए दुष्टों से दूर रहें- महंत हरिओमशरणदास महाराज

ईश्वर को पाने के लिए दुष्टों से दूर रहें- महंत हरिओमशरणदास महाराज
लालीवाव में श्रीमद्भागवतकथा में उमड़ा श्रद्धा का ज्वार
        बांसवाड़ा 10 जुलाई।
        श्रीमद्भागवतमर्मज्ञ संत श्री हरिओमशरणदास महाराज ने कहा है कि ईश्वर का अपने हृदय में निवास स्थिर करने के लिए ईश्वरीय गुणों को आत्मसात करना जरूरी है। अश्वत्थामा की कथा का उद्धरण देते हुए महाराजश्री ने कहा कि पाण्डवों के पुत्रों का वध तक कर देने वाले अश्वत्थामा को द्रौपदी ने ब्राह्मण पुत्र एवं गुरु पुत्र हो जाने से क्षमा कर दिया और दया को अपनाया, इसीलये भगवान की वह कृपा पात्र बनी रही।



       
उन्होंने कहा कि जीवन के प्रत्येक क्षण में भगवान का स्मरण बना रहना चाहिए तभी जीवनयात्रा की सफलता संभव है। दुःखों में ही भगवान को याद करने और सुखों में भूल जाने की प्रवृत्ति ही वह कारक है जिसकी वजह से आत्मीय आनंद छीन जाता है। कुंती ने इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण से मांगा कि जीवन में सदैव दुःख ही दुःख मिलें ताकि भगवान का स्मरण दिन-रात बना रहे।
        पापकर्म में रत और पापी व्यक्ति के अन्न को त्यागने पर बल देते हुए लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमशरणदास महाराज ने पितामह भीष्म और द्रौपदी के संवाद का उदाहरण दिया और कहा कि स्वयं पितामह ने स्पष्ट किया था कि पापी दुर्योधन का अन्न खाने से उनकी मति भ्रष्ट हो गई थी। इसलिए जो व्यक्ति दुष्ट है, पापी है उससे संबंध होने का अर्थ है भगवान से दूरी, ज्ञान और विवेक से दूरी। ऐसे दुष्ट व्यक्तियों का संग किसी को भी, कभी भी डूबो दे सकता है। सज्जनों को चाहिए कि दुष्ट व्यक्तियों के संग और व्यवहार से दूरी बनाए रखे।
        महंतश्री ने कहा कि पापियों के संग में मुफ्त में खाने-पीने से लेकर सारी सुविधाएं तक अच्छी लगती हैं लेकिन जीवन के लक्ष्य से मनुष्य भटक जाता है और यह विवेक तग जगता है जब संसार से विदा होने का समय आता है। इसलिए अभी से सचेत हो जाओ और दुष्टांें-पापियों से दूर रहकर अच्छे काम करो, ईश्वर का चिंतन करो।
        भजनों ने किया मुग्ध
        श्रीमद् भागवत कथा के अन्तर्गत ऑरगनवादक श्री गणेशलाल शर्मा एवं दल द्वारा वाद्यों की संगत पर रोजाना प्रस्तुत किए जा रहे भजन श्रद्धालुओं को मुग्ध करने लगे हैं। रविवार को शर्मा ने ‘‘ रामचरण अनुराग है, तेरी बिगड़ी बनेगी..’’, तथा ‘‘मिलता है सच्चा सुख केवल भगवान तुम्हारे चरणों में ’’ की सुमधुर गायकी पर रसिक श्रोता झूम उठे। संचालन शांतिलाल भावसार ने किया। आरंभ में मुख्य कथा यजमान  अरुण साकोरीकरण एवं आशा साकोरीकर तथा सह यजमान महेश राणा एवं राजेन्द्र राणा तथा परिजनों ने श्रीमद्भागवत की विधि विधान से पूजा-अर्चना की और आरती उतारी।
        पार्थिव लिंगों से बना सूर्य यंत्र
        लालीवाव मठ में चल रहे आठ दिवसीय गुरुपूर्णिमा महोत्सव के अन्तर्गत रविवार को मिट्टी के बने पार्थेश्वर शिवलिंगों से निर्मित सूर्य यंत्र और अन्य देव प्रतिमाओं एवं यंत्रों के पूजन के लिए श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहा। पं. ललित पाठक के सान्निध्य में साधकों के समूहों ने शनिवार को धनुषाकार शनि यंत्र तथा रविवार को सूर्य यंत्र का निर्माण किया। 

Saturday, July 9, 2011

मनुष्य जन्म के लक्ष्य का चिंतन करें - हरिओमशरणरदास महाराज

मनुष्य जन्म के लक्ष्य का चिंतन करें - हरिओमशरणरदास महाराज
लालीवाव मठ में श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव
बांसवाड़ा, 9 जुलाई/‘‘मनुष्य की दुर्लभ योनि की प्राप्ति का लक्ष्य प्रभु की भक्ति और साक्षात्कार है। हर मनुष्य को अपने जन्म लेने के उद्देश्य को समझकर कार्य करना होगा। लक्ष्य प्राप्ति के बिना जीवन निरर्थक है।’’
यह उद्गार ऐतिहासिक लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन शनिवार को व्यासपीठ से लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमशरणदास महाराज ने कथाअमृतवृष्टि करते हुए व्यक्त किए।



उन्होंने कहा कि भारतभूमि पर जन्म लेना दुर्लभ है, और ऐसे में मनुष्य योनि का संयोग मणि-कांचन योग है। भारत भगवान की अवतार भूमि है। कृष्ण भक्ति, शास्त्रों का श्रवण, अध्ययन-मनन आदि से दैवत्व और दिव्यत्व प्राप्त होता है। शास्त्रों में किसी की कथा का वर्णन नहीं है बल्कि उनमें सिद्धान्त हैं, लक्ष्य हैं, और वह है भगवान का अहर्निश स्मरण करना।
महाराजश्री ने कहा कि भगवान का अवतार सत्य की रक्षा के लिए होता है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम एवं वृन्दावनबिहारी कृष्ण भगवान के अवतारों से हमें पिण्ड से ब्रह्माण्ड तक का सारा ज्ञान हो जाता है।
सत्संग से संवारे जीवन को
सत्संग को जीवन निर्माण का अनिवार्य अंग बताते हुए उन्होंने कहा कि जहां कहीं उपलब्ध हो, सत्संग का लाभ लेना चाहिए। सत्संग संतों के बीच ही मिलता है। सत्संग का मौका जीवन में कभी नहीं गंवाना चाहिए। इसी से नए जीवन का उदय होता है।
आरंभ में मुख्य यजमान अरुण साकोरीकर एवं श्रीमती आशा साकोरीकर तथा सह यजमान महेश राणा एवं राजेन्द्र राणा तथा भक्तों दयाराम सिंधी, गणेशलाल सोनी, नीरज आदि ने भागवत की पूजा की तथा व्यासपीठ का स्वागत किया।

Friday, July 8, 2011

लालीवाव मठ में श्रीमद् भागवत कथा शुरू

करोड़ों पुण्यों का उदय हो,  तभी संभव है भागवत श्रवण 
- महंत हरिओमशरणदास महाराज
बांसवाड़ा, 8 जुलाई/ गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष में ऐतिहासिक लालीवाव मठ में शुक्रवार से श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव आरंभ हुआ। लालीवाव मठ के पीठाधीश्वर महन्त हरिओमशरणदास महाराज ने सदियों से आस्था केेन्द्र रहे मठ के प्रधान देव भगवान श्रीपद्मनाभ की विशेष पूजा-अर्चना की और विनायक महापूजा के साथ दीप प्रज्वलित कर आठ दिवसीय महोत्सव का श्रीगणेश किया।

लालीवाव पीठाधीश्वर, श्रीमद्भागवतमर्मज्ञ महंत श्री हरिओमशरणदास महाराज ने पहले दिन शुक्रवार को श्रीमद्भागवतकथाअमृत वृष्टि करते हुए श्रीमद्भागवत कथा श्रवण को परम कल्याणकारी बताया और कहा कि भागवत धर्म के अनुरूप चलकर ही व्यक्ति जीवन के सभी लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकता है, यह मोक्षदायिनी है, पितरों का उद्धार करने वाली है, शाश्वत सुख-शांति देने वाली है। इसके श्रवण एवं मनन से पूर्वजन्मों के करोड़ों पापों का नाश होता है और पुण्यों का उदय होता है। भागवत वही सुन सकता है जिसके पुण्य का उदय होता है।
महन्तश्री ने धुंधुकारी, गोकर्ण की कथा को विस्तार से समझाया तथा कहा कि मनुष्य को अपनी बुद्धि को बदलना चाहिए और अपने आप को इस तरह बनाना चाहिए कि व्यक्तित्व दिव्यत्व से भरा हो। रोजाना भगवान का ध्यान,मनन और स्मरण करना चाहिए।
श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव में यजमान अरुण साकोरीकर, श्रीमती आशा व पुत्री नन्दिनी एवं साकोरीकर परिवार और सह यजमान महेश एवं राजेश राणा ने सपरिवार श्रीमद् भागवत की पूजा की और कथावाचक श्रीमद्भागवतमर्मज्ञ महंत श्री हरिओमशरणदास महाराज का पुष्पहार व श्रीफल से स्वागत किया। इससे पूर्व महंत श्री हरिओमशरणदास महाराज के सान्निध्य में श्री पद्मनाथ मन्दिर में श्रीमद्भागवत पोथीपूजन सभी यजमानों ने किया तथा पोथी धारण कर गाजे-बाजे के साथ भजन-कीर्तन करते हुए व्यासपीठ के समक्ष पोथी विराजित की गई। जहां भक्तों के समूहों ने पृष्पवृष्टि कर पोथी व महंत का स्वागत किया।
कथा के आरंभ में यजमानों के साथ ही लालीवाव मठ भक्त मण्डल की ओर से मनोहरलाल जोशी, विमल भट्ट, सुखलाल तेली, प्रवीण गुप्ता, दीपक तेली, छगनलाल, नाथुलाल(कंजाड़ा वाले), मगनलाल त्रिवेदी, राजेन्द्र कुलश्रेष्ठ, मधु कुलश्रेष्ठ, शांतिलाल भावसार आदि ने पुष्पहार पहनाकर कथावाचक महंतश्री का स्वागत किया और भागवत की पूजा की। संचालन प्रसिद्ध समाजसेवी शांतिलाल भावसार ने किया।
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लालीवाव मठ में सवा लक्ष पार्थेश्वर पूजा महाविधान शुरू
मिट्टी के शिवलिंग बनाकर पूजन को उमडे़ शिवभक्त
बांसवाड़ा, 8 जुलाई/सदियों से धर्म और श्रद्धा जागरण के केन्द्र ऐतिहासिक लालीवाव मठ में आठ दिवसीय गुरुपूर्णिमा महोत्सव के अन्तर्गत शुक्रवार को सवा लक्ष पार्थेश्वर शिवलिंग पूजा महाविधान अनुष्ठान शुरू हुआ।
लालीवाव पीठाधीश्वर महन्तश्री हरिओमशरणदास महाराज के सान्निध्य एवं जाने-माने कर्मकाण्डी पं. इच्छाशंकर जोशी एवं प्राच्यविद्यामर्मज्ञ ब्रह्मर्षि पं. दिव्यभारत पण्ड्या के आचार्यत्व में शिवभक्त साधकों के समूहों ने मिट्टी की विधिविधान से शुद्धिकरण मंत्रों से संस्कार पूजा की और मिट्टी के शिवलिंग बनाकर इनमें वैदिक ऋचाओं और मंत्रों से प्राण-प्रतिष्ठा करते हुए विभिन्न देवी-देवताओं की आकृतियों के साथ ही शुक्र यंत्र का निर्माण किया।

इसके बाद पण्डितों के समूह ने रूद्राभिषेक तथा शिवभक्तों ने पंचाक्षरी मंत्र के जाप से पार्थेश्वर शिवलिंगों की पूजा की।
ब्रह्मर्षि पं. दिव्यभारत पण्ड्या ने भक्तों को संबोधित करते हुए बताया कि पार्थिव शिवलिंग निर्माण व पूजन से सर्वग्रहशांति, कालसर्पदोष, वास्तुदोष, मांगलिक दोष आदि का निवारण होता है तथा सुख-शांति एवं समृद्धि प्राप्त होती है। इसके साथ ही भगवान शिव की कृपा से व्यक्ति के सभी मनोरथ अवश्य पूर्ण होते हैं।