Wednesday, July 17, 2013

भागवत कथा में सजाई भगवान विष्णु की झांकी

श्रीमद् भागवत कथा मर्मज्ञ महंत हरिओमशरणदास महाराज ने कहा है कि ईश्वर का अपने हृदय में निवास स्थिर करने के लिए ईश्वरीय गुणों को आत्मसात करना जरूरी है। हमें भूतकाल को भूलकर वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए-। साथ ही सृष्टि में बदलाव लाना चाहिए-,जैसा भाव होगा वैसी दृष्टि बनेगी, ब्रह्म दृष्टि बनने पर सभी में ईश्वर दिखता है । भगवान से हमें मुक्ति का पद मांगना चाहिए। संसार में सभी जीव परमात्मा के अंश है । सभी में परमात्मा को देखने वाला विद्वान होता है । जिसकी दृष्टि में शुद्धता नहीं होती है वह इस संसार में पूजा नहीं जाता है अर्थात् शुद्धता से ही सबका प्रिय बना जा सकता है। मनुष्य की सभी वासनाएं परिपूर्ण नहीं होती हैं । भगवान को प्राप्त होने से प्राणी तृप्त हो जाता है ।

अश्वत्थामा की कथा का उद्धरण देते हुए महाराज ने कहा कि पाण्डवों के पुत्रों का वध तक कर देने वाले अश्वत्थामा को द्रौपदी ने ब्राह्मण पुत्र एवं गुरु पुत्र हो जाने से क्षमा कर दिया और दया को अपनाया। इसलिए भगवान की वह कृपा पात्र बनी रही। उन्होंने कहा कि जीवन के प्रत्येक क्षण में भगवान का स्मरण बना रहना चाहिए तभी जीवनयात्रा की सफलता संभव है। दु:खों में ही भगवान को याद करने और सुखों में भूल जाने की प्रवृत्ति ही वह कारक है। जिसकी वजह से आत्मीय आनंद छीन जाता है। कुंती ने इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण से मांगा कि जीवन में सदैव दु:ख ही दु:ख मिले ताकि भगवान का स्मरण दिन-रात कर सकें। पापकर्म में रत और पापी व्यक्ति के अन्न को त्यागने पर बल देते हुए महाराज ने भीष्म पितामह और द्रौपदी के संवाद का उदाहरण दिया और कहा कि स्वयं पितामह ने स्पष्ट किया था कि पापी दुर्योधन का अन्न खाने से उनकी मति भ्रष्ट हो गई थी। इसलिए जो व्यक्ति दुष्ट है, पापी है उससे संबंध होने का अर्थ है भगवान से दूरी, ज्ञान और विवेक से दूरी। ऐसे दुष्ट व्यक्तियों का संग किसी को भी, कभी भी डूबो दे सकता है। सज्जनों को चाहिए कि दुष्ट व्यक्तियों के संग और व्यवहार से दूरी बनाए रखें।

पार्थिवेश्वर शिवलिंगों से बनाया यंत्र

लालीवाव मठ में चल रहे आठ दिवसीय गुरुपूर्णिमा महोत्सव के अन्तर्गत बुधवार को मिट्टी के बने पार्थिवेश्वर शिवलिंगों से निर्मित यंत्र और अन्य देव प्रतिमाओं एवं यंत्रों के पूजन के लिए श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहा। पं. ललित पाठक के सान्निध्य में साधकों के समूहों ने यंत्र का निर्माण किया।

बांसवाड़ा. भागवत कथा के दौरान भगवान की सजाई गई झांकी। 


























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