Thursday, December 28, 2017
Wednesday, August 2, 2017
Wednesday, July 12, 2017
Kaliya Mardan
Kaliya Mardan Jhanki Laliwav Math Banswara
कालिया दमन(मर्दन) (Gurupurnima Mahotsav 2017)
शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में चल रही श्रीमद् भागवत कथा एवं गुरुपूर्णिमा महामहोत्सव के तहत हजारों भक्त प्रतिदिन यहां आ रहे हैं । इसके तहत भगवान पद्मनाभ के कालिया मर्दन की श्रृंगारित प्रतिमा में सर्पों द्वारा भगवान कृष्ण को ढंश मारना, भगवान द्वारा कालिया को मारना व बिजली की आवाज ने भक्तों को काफी आकर्षित किया हर कोई देखकर भाव विभोर हो जाता है ।
कालिया दमन(मर्दन) (Gurupurnima Mahotsav 2017)
शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में चल रही श्रीमद् भागवत कथा एवं गुरुपूर्णिमा महामहोत्सव के तहत हजारों भक्त प्रतिदिन यहां आ रहे हैं । इसके तहत भगवान पद्मनाभ के कालिया मर्दन की श्रृंगारित प्रतिमा में सर्पों द्वारा भगवान कृष्ण को ढंश मारना, भगवान द्वारा कालिया को मारना व बिजली की आवाज ने भक्तों को काफी आकर्षित किया हर कोई देखकर भाव विभोर हो जाता है ।
Bhandara Gurupurnima 2017
गुरुपूर्णिमा महोत्सव भण्डारा 2017
प.पू. श्रीमहंत श्री हरिओमदासजी महाराज
तपोभूमि लालीवाव मठ, बाँसवाड़ा
Bhajan Sandhya 2017 Gurupurnima
प.पू. महामण्डलेश्वर श्री हरिओमदासजी महाराज के पावन सानिध्य में
गुरुपूर्णिमा महोत्सव भजन संध्या, तपोभूमि लालीवाव मठ
Tuesday, July 11, 2017
Kaliya Mardan at Tapobhumi Laliwav Math
कालिया दमन(मर्दन) (Gurupurnima Mahotsav 2017)
शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में चल रही श्रीमद् भागवत कथा एवं गुरुपूर्णिमा महामहोत्सव के तहत हजारों भक्त प्रतिदिन यहां आ रहे हैं । इसके तहत भगवान पद्मनाभ के कालिया मर्दन की श्रृंगारित प्रतिमा में सर्पों द्वारा भगवान कृष्ण को ढंश मारना, भगवान द्वारा कालिया को मारना व बिजली की आवाज ने भक्तों को काफी आकर्षित किया हर कोई देखकर भाव विभोर हो जाता है ।
Aarti Gurupurnima 2017 at Tapobhumi Laliwav Math, Banswara (Raj.)
गुरुपूर्णिमा महामहोत्सव भगवान पद्मनाभ आरती, तपोभूमि लालीवाव मठ, बाँसवाड़ा
Kanya pujan at Tapobhumi Laliwav Math
गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर प. पू. महामण्डलेश्वर श्री हरिओमदासजी महाराज के पावन सानिध्य में
कन्या पूजन, तपोभूमि लालीवाव मठ, बाँसवाड़ा
Kaliya Mardan at Padmanabh Temple, Tapobhumi Laliwav Math, Banswara
कालिया दमन(मर्दन)
शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में चल रही श्रीमद् भागवत कथा एवं गुरुपूर्णिमा महामहोत्सव के तहत हजारों भक्त प्रतिदिन यहां आ रहे हैं । इसके तहत भगवान पद्मनाभ के कालिया मर्दन की श्रृंगारित प्रतिमा में सर्पों द्वारा भगवान कृष्ण को ढंश मारना, भगवान द्वारा कालिया को मारना व बिजली की आवाज ने भक्तों को काफी आकर्षित किया हर कोई देखकर भाव विभोर हो जाता है ।
शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में चल रही श्रीमद् भागवत कथा एवं गुरुपूर्णिमा महामहोत्सव के तहत हजारों भक्त प्रतिदिन यहां आ रहे हैं । इसके तहत भगवान पद्मनाभ के कालिया मर्दन की श्रृंगारित प्रतिमा में सर्पों द्वारा भगवान कृष्ण को ढंश मारना, भगवान द्वारा कालिया को मारना व बिजली की आवाज ने भक्तों को काफी आकर्षित किया हर कोई देखकर भाव विभोर हो जाता है ।
Sunday, July 2, 2017
Bhagwat katha - Tapobhumi Laliwav Math
भागवत सुनने से ही कल्याण: पं. अनिलकृष्ण
लालीवाव मठ में महामंडलेश्वर हरिओमदासजी महाराज के सानिध्य में कथा शुरू
शहर के सूरजपोल के लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव के उपलक्ष्य में महामंडलेश्वर हरिओमदासजी महाराज के सानिध्य में शुरू हुई 7 दिवसीय श्रीमदभागवत कथा के प्रथम दिन कथावाचक पं. अनिलकृष्णजी महाराज ने कहा कि वेदों का सार युगों से मानव तक पहुंचता रहा है। 'भागवत महापुराण' यह उसी सनातन ज्ञान का सागर है, जो वेदों से बहकर चली रही है, जो हमारे जड़वत जीवन में चेतन्यता का संचार करती है और जो हमारे जीवन को सुंदर बनाती है, वो भागवत कथा है। यह एक ऐसी अमृत कथा है, जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।
कथा को सुनने और जीवन में अपनाने से संपूर्ण पापों का नाश होता है। आज मनुष्य उसी प्रभु को भूलकर इस संसार को अपना समझ बैठा है। चौरासी लाख योनियों में उत्थान दिलवाने वाली मानवरूपी जन्म ही कल्याणकारी है। जो हमें ईश्वर से मिलाती है। हमारे पूर्व जन्मों के करोड़ों पुण्य होने पर ही हम कथा काे सुनने का लाभ ले सकते हैं।इससे पूर्व मठ के प्रधान मंदिर भगवान पद्मनाभ से कथा पंडाल तक भागवत पौथीयात्रा निकाली गई। पौथी का पूजन इच्छाशंकरजी, पंडित समरत मेहता, पंडित घनश्याम द्वारा किया गया।
लालीवाव मठ में महामंडलेश्वर हरिओमदासजी महाराज के सानिध्य में कथा शुरू
शहर के सूरजपोल के लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव के उपलक्ष्य में महामंडलेश्वर हरिओमदासजी महाराज के सानिध्य में शुरू हुई 7 दिवसीय श्रीमदभागवत कथा के प्रथम दिन कथावाचक पं. अनिलकृष्णजी महाराज ने कहा कि वेदों का सार युगों से मानव तक पहुंचता रहा है। 'भागवत महापुराण' यह उसी सनातन ज्ञान का सागर है, जो वेदों से बहकर चली रही है, जो हमारे जड़वत जीवन में चेतन्यता का संचार करती है और जो हमारे जीवन को सुंदर बनाती है, वो भागवत कथा है। यह एक ऐसी अमृत कथा है, जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।
कथा को सुनने और जीवन में अपनाने से संपूर्ण पापों का नाश होता है। आज मनुष्य उसी प्रभु को भूलकर इस संसार को अपना समझ बैठा है। चौरासी लाख योनियों में उत्थान दिलवाने वाली मानवरूपी जन्म ही कल्याणकारी है। जो हमें ईश्वर से मिलाती है। हमारे पूर्व जन्मों के करोड़ों पुण्य होने पर ही हम कथा काे सुनने का लाभ ले सकते हैं।इससे पूर्व मठ के प्रधान मंदिर भगवान पद्मनाभ से कथा पंडाल तक भागवत पौथीयात्रा निकाली गई। पौथी का पूजन इच्छाशंकरजी, पंडित समरत मेहता, पंडित घनश्याम द्वारा किया गया।
आराध्य के चिंतन से मिलता है आनंद- हरिओमदासजी
महामंडलेश्वरहरिओमदासजी महाराज ने कहा कि मानव सांसारिक वस्तुओं में सुंदरता ढूंढता है। सुंदर और भोग प्रदान करने वाली वस्तुओं को एकत्रित कर प्रसन्न होता है। भगवतप्रेमी अपने आराध्य के स्वरूप चिंतन में ही आनंदमय होता है। भगवान सर्वत्र हैं, जिन्हें इन भौतिक आंखों से देखा नहीं जा सकता है। इसके लिए स्वच्छ हृदय और पवित्र मानसिक आंखें चाहिए। हम भगवान को सिर्फ मुसीबत में याद करते हैं।
महामंडलेश्वरहरिओमदासजी महाराज ने कहा कि मानव सांसारिक वस्तुओं में सुंदरता ढूंढता है। सुंदर और भोग प्रदान करने वाली वस्तुओं को एकत्रित कर प्रसन्न होता है। भगवतप्रेमी अपने आराध्य के स्वरूप चिंतन में ही आनंदमय होता है। भगवान सर्वत्र हैं, जिन्हें इन भौतिक आंखों से देखा नहीं जा सकता है। इसके लिए स्वच्छ हृदय और पवित्र मानसिक आंखें चाहिए। हम भगवान को सिर्फ मुसीबत में याद करते हैं।
मठ में पार्थिव शिव पूजा शुरू
लालीवावमठ में रविवार को मिट्टी के बने पार्थेश्वर शिवलिंगों से निर्मित सूर्ययंत्र और देव प्रतिमाओं एवं यंत्रों के पूजन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ रही। सुबह भगवान भोले का रुद्राभिषेक और लघुरुद्र किया गया। इसके पश्चात् भागवतजी और पार्थिव शिवजी की आरती सुभाष अग्रवाल, लोकेंद्र भट्ट, सुखलाल तेली, रमेश तेली, महेश राणा, अरविंद खेरावत, पुरुषोत्तम शर्मा, ईश्वरीदेवी द्वारा उतारी गई।
लालीवावमठ में रविवार को मिट्टी के बने पार्थेश्वर शिवलिंगों से निर्मित सूर्ययंत्र और देव प्रतिमाओं एवं यंत्रों के पूजन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ रही। सुबह भगवान भोले का रुद्राभिषेक और लघुरुद्र किया गया। इसके पश्चात् भागवतजी और पार्थिव शिवजी की आरती सुभाष अग्रवाल, लोकेंद्र भट्ट, सुखलाल तेली, रमेश तेली, महेश राणा, अरविंद खेरावत, पुरुषोत्तम शर्मा, ईश्वरीदेवी द्वारा उतारी गई।
Friday, June 30, 2017
लालीवाव मठ में भागवत कथा कल से....
लालीवाव मठ में भागवत कथा कल से....
भावभरा-आमंत्रण
चलो तपोभूमि लालीवाव मठ, गुरुपूनम आई है, भगवान पद्मनाभ ने बुलाया है...
श्रीमद् भागवत कथा एवं गुरुपूर्णिमा महामहोत्सव-2017
इस अत्यंत पुण्यदायक अनुष्ठान व
कथा श्रवण के महनीय एवं अलम्य अवसर का
दिव्य लाभ लेने हेतु बन्धु-बान्धव, इष्ट-मित्रों एवं
परिजनों के साथ आप सादर आमंत्रित है ।
चलो तपोभूमि लालीवाव मठ, गुरुपूनम आई है, भगवान पद्मनाभ ने बुलाया है...
श्रीमद् भागवत कथा एवं गुरुपूर्णिमा महामहोत्सव-2017
इस अत्यंत पुण्यदायक अनुष्ठान व
कथा श्रवण के महनीय एवं अलम्य अवसर का
दिव्य लाभ लेने हेतु बन्धु-बान्धव, इष्ट-मित्रों एवं
परिजनों के साथ आप सादर आमंत्रित है ।
Sunday, June 25, 2017
Saturday, June 24, 2017
Tuesday, May 9, 2017
भगवान नृसिंह दर्शन- Bhagwan Narsingh Darshan
Narsingh Temple, Tapobhumi Laliwav Math Banswara
Narsingh Jayanti 2017
लालीवाव मठ में भगवान नृसिंह का आकर्षक श्रृंगार
बांसवाड़ा. शहर के सूरजपोल स्थित लालीवाव मठ में हर साल की तरह इस साल भी भगवान नृसिंह का प्राकट्योत्सव उल्लास के साथ मनााया गया। शाम 7 बजे संध्या आरती करने के बाद रात को भजन संध्या हुई। इसमें भक्तों ने भगवान के प्राकट्योत्सव से जुड़े सुमधुर भजन प्रस्तुत किए। नृसिंह जयंती पर आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए महंत हरिओमशरणदासजी ने कहा कि भक्त के लिए भगवान कुछ भी कर सकते हैं, असुरों को पटकने के लिए कोई भी रूप धारण करते हैं, हिरण्यकश्यपु जैसे असुर जब भक्त प्रहलाद को परेशान करते, तब भगवान प्रहलाद को नृसिंह रूप धारण कर अभयदान देते हैं।
Narsingh Jayanti 2017
लालीवाव मठ में भगवान नृसिंह का आकर्षक श्रृंगार
बांसवाड़ा. शहर के सूरजपोल स्थित लालीवाव मठ में हर साल की तरह इस साल भी भगवान नृसिंह का प्राकट्योत्सव उल्लास के साथ मनााया गया। शाम 7 बजे संध्या आरती करने के बाद रात को भजन संध्या हुई। इसमें भक्तों ने भगवान के प्राकट्योत्सव से जुड़े सुमधुर भजन प्रस्तुत किए। नृसिंह जयंती पर आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए महंत हरिओमशरणदासजी ने कहा कि भक्त के लिए भगवान कुछ भी कर सकते हैं, असुरों को पटकने के लिए कोई भी रूप धारण करते हैं, हिरण्यकश्यपु जैसे असुर जब भक्त प्रहलाद को परेशान करते, तब भगवान प्रहलाद को नृसिंह रूप धारण कर अभयदान देते हैं।
Thursday, April 20, 2017
Tuesday, April 18, 2017
Bhagwat Katha - तृतीय दिवस - महामंडलेश्वर हरिओदासजी महाराज
जीवन के हर क्षण में बना रहे भगवान का स्मरण
घाटोल
तपोभूमि लालीवाव मठ पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर हरिओमदास महाराज ने कहा कि पूर्व काल में जो कुछ भी किया है, उसका फल इस युग में जरूर मिलता है। इसलिए मनुष्य जो भी कर्म करता है, उसके कर्म की ही पूजा होती है। वे सरस्वती विद्या मंदिर घाटोल में चल रही सात दिवसीय भागवत कथा के तीसरे दिन श्रद्धालुओं को प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने कहा कि इच्छा शक्ति ज्ञानशक्ति को मजबूत बनाना जरूरी है। व्यक्ति को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहकर सही रूप से निर्वहन करना चाहिए। व्यक्ति का पहला शत्रु अज्ञानता है और पहला गुरु उसकी मां ही होती है। कथा के दौरान श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।
ध्यान से रुकेगा मन का भटकाव: कथाचार्यमहंत हरिओमदास महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा के मर्म पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ईश्वर में ध्यान लगाकर मन के भटकाव को रोका जा सकता है। यह तभी संभव होगा, जब मनुष्य भक्ति में लीन हो जाएगा। उन्होंने कहा कि ईश्वर का अपने हृदय में निवास स्थिर करने के लिए ईश्वरीय गुणों को आत्मसात करना जरूरी है। भूतकाल को भूलकर वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए, सृष्टि में बदलाव लाना चाहिए-जैसा भाव होगा वैसी दृष्टि बनेगी, ब्रह्म दृष्टि बनने पर सभी में ईश्वर दिखता है। भगवान से हमें मुक्ति का पद मांगना चाहिए। संसार में सभी जीव परमात्मा के अंश हैं। सभी में परमात्मा को देखने वाला विद्वान होता है। जिसकी दृष्टि में शुद्धता नहीं होती है वह इस संसार में पूजा नहीं जाता है अर्थात् शुद्धता से ही सबका प्रिय बना जा सकता है। मनुष्य की सभी वासनाएं परिपूर्ण नहीं होती हैं। भगवान को प्राप्त होने से प्राणी तृप्त हो जाता है।
प्रत्येकक्षण में ईश्वर का करें स्मरण: अश्वत्थामाकी कथा का उद्धरण देते हुए महाराजश्री ने कहा कि पांडवों के पुत्रों का वध तक कर देने वाले अश्वत्थामा को द्रौपदी ने ब्राह्मण पुत्र एवं गुरु पुत्र हो जाने से क्षमा कर दिया और दया को अपनाया, इसलिए भगवान की वह कृपा पात्र बनी रही।
उन्होंने कहा कि जीवन के प्रत्येक क्षण में भगवान का स्मरण बना रहना चाहिए, तभी जीवनयात्रा की सफलता संभव है। दुःखों में ही भगवान को याद करने और सुखों में भूल जाने की प्रवृत्ति ही वह कारक है, जिसकी वजह से आत्मीय आनंद छीन जाता है। कुंती ने इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण से मांगा कि जीवन में सदैव दुःख ही दुःख मिले, ताकि भगवान का स्मरण दिन-रात बना रहे। महंतश्री ने कहा कि 'पापियों के संग मुफ्त में खाने-पीने से लेकर सारी सुविधाएं तक अच्छी लगती हैं, लेकिन जीवन के लक्ष्य से मनुष्य भटक जाता है और यह विवेक तब जगता है जब संसार से विदा होने का समय आता है। इसलिए अभी से सचेत हो जाओ और दुष्टों-पापियों से दूर रहकर अच्छे काम करो, ईश्वर का चिंतन करो।'
मुस्कान का भी दान दीजिए : दानकई तरह के होते हैं। अभयदान और ज्ञानदान की तरह मुस्कान दान भी देना चाहिए। इसका अच्छा असर यह होता है कि सामने से भी मुस्कान मिलेगी। इसी तरह, बढ़िया वातावरण बनाने का दान भी करना चाहिए। अपनों का कभी अपमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसका बीज कांटे लेकर आता है। उन्होंने नीति को जीवन में जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि बिना नीति घर-व्यापार, राज कुछ नहीं चलता। नीति से जीवन जीने पर तो अधिक धन भी नहीं चाहिए।
कथामें गौसंत रघुवीरदास महाराज का भी सानिध्य रहा
इसके साथ ध्रुव चरित्र पृथु चरित्र, जड़ भरत चरित्र अजामिल उपाख्यान, प्रहलाद चरित्र, नृसिंह अवतार आदि प्रसंग सुनाए गए। इसके साथ ही शाम 4 बजे भगवान को भोग एवं उसके बाद भागवत की आरती उतारी गई एवं प्रसाद वितरण किया गया।
घाटोल
तपोभूमि लालीवाव मठ पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर हरिओमदास महाराज ने कहा कि पूर्व काल में जो कुछ भी किया है, उसका फल इस युग में जरूर मिलता है। इसलिए मनुष्य जो भी कर्म करता है, उसके कर्म की ही पूजा होती है। वे सरस्वती विद्या मंदिर घाटोल में चल रही सात दिवसीय भागवत कथा के तीसरे दिन श्रद्धालुओं को प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने कहा कि इच्छा शक्ति ज्ञानशक्ति को मजबूत बनाना जरूरी है। व्यक्ति को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहकर सही रूप से निर्वहन करना चाहिए। व्यक्ति का पहला शत्रु अज्ञानता है और पहला गुरु उसकी मां ही होती है। कथा के दौरान श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।
ध्यान से रुकेगा मन का भटकाव: कथाचार्यमहंत हरिओमदास महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा के मर्म पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ईश्वर में ध्यान लगाकर मन के भटकाव को रोका जा सकता है। यह तभी संभव होगा, जब मनुष्य भक्ति में लीन हो जाएगा। उन्होंने कहा कि ईश्वर का अपने हृदय में निवास स्थिर करने के लिए ईश्वरीय गुणों को आत्मसात करना जरूरी है। भूतकाल को भूलकर वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए, सृष्टि में बदलाव लाना चाहिए-जैसा भाव होगा वैसी दृष्टि बनेगी, ब्रह्म दृष्टि बनने पर सभी में ईश्वर दिखता है। भगवान से हमें मुक्ति का पद मांगना चाहिए। संसार में सभी जीव परमात्मा के अंश हैं। सभी में परमात्मा को देखने वाला विद्वान होता है। जिसकी दृष्टि में शुद्धता नहीं होती है वह इस संसार में पूजा नहीं जाता है अर्थात् शुद्धता से ही सबका प्रिय बना जा सकता है। मनुष्य की सभी वासनाएं परिपूर्ण नहीं होती हैं। भगवान को प्राप्त होने से प्राणी तृप्त हो जाता है।
प्रत्येकक्षण में ईश्वर का करें स्मरण: अश्वत्थामाकी कथा का उद्धरण देते हुए महाराजश्री ने कहा कि पांडवों के पुत्रों का वध तक कर देने वाले अश्वत्थामा को द्रौपदी ने ब्राह्मण पुत्र एवं गुरु पुत्र हो जाने से क्षमा कर दिया और दया को अपनाया, इसलिए भगवान की वह कृपा पात्र बनी रही।
उन्होंने कहा कि जीवन के प्रत्येक क्षण में भगवान का स्मरण बना रहना चाहिए, तभी जीवनयात्रा की सफलता संभव है। दुःखों में ही भगवान को याद करने और सुखों में भूल जाने की प्रवृत्ति ही वह कारक है, जिसकी वजह से आत्मीय आनंद छीन जाता है। कुंती ने इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण से मांगा कि जीवन में सदैव दुःख ही दुःख मिले, ताकि भगवान का स्मरण दिन-रात बना रहे। महंतश्री ने कहा कि 'पापियों के संग मुफ्त में खाने-पीने से लेकर सारी सुविधाएं तक अच्छी लगती हैं, लेकिन जीवन के लक्ष्य से मनुष्य भटक जाता है और यह विवेक तब जगता है जब संसार से विदा होने का समय आता है। इसलिए अभी से सचेत हो जाओ और दुष्टों-पापियों से दूर रहकर अच्छे काम करो, ईश्वर का चिंतन करो।'
मुस्कान का भी दान दीजिए : दानकई तरह के होते हैं। अभयदान और ज्ञानदान की तरह मुस्कान दान भी देना चाहिए। इसका अच्छा असर यह होता है कि सामने से भी मुस्कान मिलेगी। इसी तरह, बढ़िया वातावरण बनाने का दान भी करना चाहिए। अपनों का कभी अपमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसका बीज कांटे लेकर आता है। उन्होंने नीति को जीवन में जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि बिना नीति घर-व्यापार, राज कुछ नहीं चलता। नीति से जीवन जीने पर तो अधिक धन भी नहीं चाहिए।
कथामें गौसंत रघुवीरदास महाराज का भी सानिध्य रहा
इसके साथ ध्रुव चरित्र पृथु चरित्र, जड़ भरत चरित्र अजामिल उपाख्यान, प्रहलाद चरित्र, नृसिंह अवतार आदि प्रसंग सुनाए गए। इसके साथ ही शाम 4 बजे भगवान को भोग एवं उसके बाद भागवत की आरती उतारी गई एवं प्रसाद वितरण किया गया।
Monday, April 17, 2017
Bhagwat Katha - हरिओदासजी महाराज
चिंता छोड़, चिंतन करें - हरिओमशरणदासजी
उदाजी का गढ़ा घाटोल में चल रही सात दिवसीय भागवत कथा के दूसरे दिन महाराज ने प्रवचन दिए
उदाजी का गढ़ा घाटोल में चल रही सात दिवसीय भागवत कथा के दूसरे दिन महाराज ने प्रवचन दिए
घाटोल/खमेरा
सरस्वती विद्या मंदिर उदाजी का गढ़ा में चल रही सात दिवसीय भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक लालीवाव मठ के हरिओमशरणदास महाराज ने आचरण और सत्य भाषण पर जोर दिया। महाराज ने कहा कि भागवत प्राप्ति का नहीं अपितु प्रेम का साधन है, जब तक प्रेम नहीं होगा, अनुरक्ति प्राप्त नहीं होगी, अतः हमें कृष्ण से प्रेम करना होगा।
श्रीमद् भगवत मृत्यु से नहीं अपितु मृत्यु के भय से बचाती है। जो होना है वो होगा ही, तो चिंता क्यों? चिंता चिता दोनों सगी बहने हैं, जहां चिता मरने के बाद जलाती है, वहीं चिंता जीते जी मनुष्य को जलाती है। अतः चिंता छोड़े और चिन्तन करें। कथा पांडाल में शिव पार्वती के विवाह की झांकी आकर्षण का केंद्र रही।भागवत कथा सुनने मात्र से ही कट जाते हैं पाप, लेकिन कथा सुनने में तीन बाधाएं व्यवधान उत्पन्न करते हैं। इनमें नींद वाणी और पैर शामिल हैं। जो भक्त इन बाधाओं से मुक्त होकर भागवत कथा का श्रवण करते हैं, उनका कष्ट, दुख, दारिद्रय, व्याधि सहित जीवन की अन्य समस्याएं नष्ट हो जाती हैं।
कलयुग में काम-क्रोध
महाराज ने कहा कि कलयुग के लोगों को काम-क्रोध की अग्नि में जलते देखकर कृष्ण ने लोगों के उद्धार के लिए शुक को भेजा। उन्होंने शुक से कहा कि कलयुगवासियों को हमारी लीलाओं का भजन कर उनका कल्याण करो। कलयुग में भगवान का नाम जपने से ही कल्याण संभव है। कहा जाता है कि 13 करोड़ मंत्र जप करने पर भगवान दर्शन का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
पार्वतीसो गई और शुक ने सुनी कथा
महाराज ने कहा कि एक बार पार्वतीजी ने भोलेनाथ से गुप्त अमर कथा सुनाने की जिद की। शिवजी ने आस-पास देखकर निश्चित होने के लिए कहा कि कोई और तो नहीं सुन रहा है। पार्वती जी ने आस-पास देखकर शिवजी को आश्वस्त कर दिया कि कोई नहीं है, लेकिन वहां शुक जी मौजूद थे। शिवजी पार्वती को कथा सुनाने लगे। कथा सुनते-सुनते पार्वतीजी को नींद गई। उनके सोने पर वहां मौजूद शुक जी हुंकार भरने लगे। पार्वतीजी की जब नींद टूटी तो उन्होंने शिवजी को नींद आने की बात बताई। भगवान ने अपनी अंतरदृष्टि से देखकर शुक जी की उपस्थिति का पता लगा लिया। उन्होंने शुकजी का वध करने के लिए त्रिशुल उठाया। शुकजी भागकर व्यासजी की पत्नी के गर्भ में छिप गए। शिवजी वध के लिए 12 वर्ष तक उनके गर्भ से निकलने का इंतजार करते रहे। बाद में व्यासजी ने शिवजी को शुकजी को क्षमा करने के लिए मना लिया। इसके साथ राजा परीक्षित को श्राप, सृष्टि निर्माण, शिव पार्वती का पुनः विवाह प्रसंग सुनाए गए। शाम 4 बजे भगवानजी को भोग लगाया और आरती उतारी।
सरस्वती विद्या मंदिर उदाजी का गढ़ा में चल रही सात दिवसीय भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक लालीवाव मठ के हरिओमशरणदास महाराज ने आचरण और सत्य भाषण पर जोर दिया। महाराज ने कहा कि भागवत प्राप्ति का नहीं अपितु प्रेम का साधन है, जब तक प्रेम नहीं होगा, अनुरक्ति प्राप्त नहीं होगी, अतः हमें कृष्ण से प्रेम करना होगा।
श्रीमद् भगवत मृत्यु से नहीं अपितु मृत्यु के भय से बचाती है। जो होना है वो होगा ही, तो चिंता क्यों? चिंता चिता दोनों सगी बहने हैं, जहां चिता मरने के बाद जलाती है, वहीं चिंता जीते जी मनुष्य को जलाती है। अतः चिंता छोड़े और चिन्तन करें। कथा पांडाल में शिव पार्वती के विवाह की झांकी आकर्षण का केंद्र रही।भागवत कथा सुनने मात्र से ही कट जाते हैं पाप, लेकिन कथा सुनने में तीन बाधाएं व्यवधान उत्पन्न करते हैं। इनमें नींद वाणी और पैर शामिल हैं। जो भक्त इन बाधाओं से मुक्त होकर भागवत कथा का श्रवण करते हैं, उनका कष्ट, दुख, दारिद्रय, व्याधि सहित जीवन की अन्य समस्याएं नष्ट हो जाती हैं।
कलयुग में काम-क्रोध
महाराज ने कहा कि कलयुग के लोगों को काम-क्रोध की अग्नि में जलते देखकर कृष्ण ने लोगों के उद्धार के लिए शुक को भेजा। उन्होंने शुक से कहा कि कलयुगवासियों को हमारी लीलाओं का भजन कर उनका कल्याण करो। कलयुग में भगवान का नाम जपने से ही कल्याण संभव है। कहा जाता है कि 13 करोड़ मंत्र जप करने पर भगवान दर्शन का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
पार्वतीसो गई और शुक ने सुनी कथा
महाराज ने कहा कि एक बार पार्वतीजी ने भोलेनाथ से गुप्त अमर कथा सुनाने की जिद की। शिवजी ने आस-पास देखकर निश्चित होने के लिए कहा कि कोई और तो नहीं सुन रहा है। पार्वती जी ने आस-पास देखकर शिवजी को आश्वस्त कर दिया कि कोई नहीं है, लेकिन वहां शुक जी मौजूद थे। शिवजी पार्वती को कथा सुनाने लगे। कथा सुनते-सुनते पार्वतीजी को नींद गई। उनके सोने पर वहां मौजूद शुक जी हुंकार भरने लगे। पार्वतीजी की जब नींद टूटी तो उन्होंने शिवजी को नींद आने की बात बताई। भगवान ने अपनी अंतरदृष्टि से देखकर शुक जी की उपस्थिति का पता लगा लिया। उन्होंने शुकजी का वध करने के लिए त्रिशुल उठाया। शुकजी भागकर व्यासजी की पत्नी के गर्भ में छिप गए। शिवजी वध के लिए 12 वर्ष तक उनके गर्भ से निकलने का इंतजार करते रहे। बाद में व्यासजी ने शिवजी को शुकजी को क्षमा करने के लिए मना लिया। इसके साथ राजा परीक्षित को श्राप, सृष्टि निर्माण, शिव पार्वती का पुनः विवाह प्रसंग सुनाए गए। शाम 4 बजे भगवानजी को भोग लगाया और आरती उतारी।
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