Monday, April 17, 2017

Bhagwat Katha - हरिओदासजी महाराज

चिंता छोड़, चिंतन करें - हरिओमशरणदासजी
उदाजी का गढ़ा घाटोल में चल रही सात दिवसीय भागवत कथा के दूसरे दिन महाराज ने प्रवचन दिए
घाटोल/खमेरा
सरस्वती विद्या मंदिर उदाजी का गढ़ा में चल रही सात दिवसीय भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक लालीवाव मठ के हरिओमशरणदास महाराज ने आचरण और सत्य भाषण पर जोर दिया। महाराज ने कहा कि भागवत प्राप्ति का नहीं अपितु प्रेम का साधन है, जब तक प्रेम नहीं होगा, अनुरक्ति प्राप्त नहीं होगी, अतः हमें कृष्ण से प्रेम करना होगा।
श्रीमद् भगवत मृत्यु से नहीं अपितु मृत्यु के भय से बचाती है। जो होना है वो होगा ही, तो चिंता क्यों? चिंता चिता दोनों सगी बहने हैं, जहां चिता मरने के बाद जलाती है, वहीं चिंता जीते जी मनुष्य को जलाती है। अतः चिंता छोड़े और चिन्तन करें। कथा पांडाल में शिव पार्वती के विवाह की झांकी आकर्षण का केंद्र रही।भागवत कथा सुनने मात्र से ही कट जाते हैं पाप, लेकिन कथा सुनने में तीन बाधाएं व्यवधान उत्पन्न करते हैं। इनमें नींद वाणी और पैर शामिल हैं। जो भक्त इन बाधाओं से मुक्त होकर भागवत कथा का श्रवण करते हैं, उनका कष्ट, दुख, दारिद्रय, व्याधि सहित जीवन की अन्य समस्याएं नष्ट हो जाती हैं।
कलयुग में काम-क्रोध
महाराज ने कहा कि कलयुग के लोगों को काम-क्रोध की अग्नि में जलते देखकर कृष्ण ने लोगों के उद्धार के लिए शुक को भेजा। उन्होंने शुक से कहा कि कलयुगवासियों को हमारी लीलाओं का भजन कर उनका कल्याण करो। कलयुग में भगवान का नाम जपने से ही कल्याण संभव है। कहा जाता है कि 13 करोड़ मंत्र जप करने पर भगवान दर्शन का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
पार्वतीसो गई और शुक ने सुनी कथा
महाराज ने कहा कि एक बार पार्वतीजी ने भोलेनाथ से गुप्त अमर कथा सुनाने की जिद की। शिवजी ने आस-पास देखकर निश्चित होने के लिए कहा कि कोई और तो नहीं सुन रहा है। पार्वती जी ने आस-पास देखकर शिवजी को आश्वस्त कर दिया कि कोई नहीं है, लेकिन वहां शुक जी मौजूद थे। शिवजी पार्वती को कथा सुनाने लगे। कथा सुनते-सुनते पार्वतीजी को नींद गई। उनके सोने पर वहां मौजूद शुक जी हुंकार भरने लगे। पार्वतीजी की जब नींद टूटी तो उन्होंने शिवजी को नींद आने की बात बताई। भगवान ने अपनी अंतरदृष्टि से देखकर शुक जी की उपस्थिति का पता लगा लिया। उन्होंने शुकजी का वध करने के लिए त्रिशुल उठाया। शुकजी भागकर व्यासजी की पत्नी के गर्भ में छिप गए। शिवजी वध के लिए 12 वर्ष तक उनके गर्भ से निकलने का इंतजार करते रहे। बाद में व्यासजी ने शिवजी को शुकजी को क्षमा करने के लिए मना लिया। इसके साथ राजा परीक्षित को श्राप, सृष्टि निर्माण, शिव पार्वती का पुनः विवाह प्रसंग सुनाए गए। शाम 4 बजे भगवानजी को भोग लगाया और आरती उतारी।




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