Tuesday, April 18, 2017

Bhagwat Katha - तृतीय दिवस - महामंडलेश्वर हरिओदासजी महाराज

जीवन के हर क्षण में बना रहे भगवान का स्मरण 
घाटोल
तपोभूमि लालीवाव मठ पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर हरिओमदास महाराज ने कहा कि पूर्व काल में जो कुछ भी किया है, उसका फल इस युग में जरूर मिलता है। इसलिए मनुष्य जो भी कर्म करता है, उसके कर्म की ही पूजा होती है। वे सरस्वती विद्या मंदिर घाटोल में चल रही सात दिवसीय भागवत कथा के तीसरे दिन श्रद्धालुओं को प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने कहा कि इच्छा शक्ति ज्ञानशक्ति को मजबूत बनाना जरूरी है। व्यक्ति को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहकर सही रूप से निर्वहन करना चाहिए। व्यक्ति का पहला शत्रु अज्ञानता है और पहला गुरु उसकी मां ही होती है। कथा के दौरान श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।
ध्यान से रुकेगा मन का भटकाव: कथाचार्यमहंत हरिओमदास महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा के मर्म पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ईश्वर में ध्यान लगाकर मन के भटकाव को रोका जा सकता है। यह तभी संभव होगा, जब मनुष्य भक्ति में लीन हो जाएगा। उन्होंने कहा कि ईश्वर का अपने हृदय में निवास स्थिर करने के लिए ईश्वरीय गुणों को आत्मसात करना जरूरी है। भूतकाल को भूलकर वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए, सृष्टि में बदलाव लाना चाहिए-जैसा भाव होगा वैसी दृष्टि बनेगी, ब्रह्म दृष्टि बनने पर सभी में ईश्वर दिखता है। भगवान से हमें मुक्ति का पद मांगना चाहिए। संसार में सभी जीव परमात्मा के अंश हैं। सभी में परमात्मा को देखने वाला विद्वान होता है। जिसकी दृष्टि में शुद्धता नहीं होती है वह इस संसार में पूजा नहीं जाता है अर्थात् शुद्धता से ही सबका प्रिय बना जा सकता है। मनुष्य की सभी वासनाएं परिपूर्ण नहीं होती हैं। भगवान को प्राप्त होने से प्राणी तृप्त हो जाता है।
प्रत्येकक्षण में ईश्वर का करें स्मरण: अश्वत्थामाकी कथा का उद्धरण देते हुए महाराजश्री ने कहा कि पांडवों के पुत्रों का वध तक कर देने वाले अश्वत्थामा को द्रौपदी ने ब्राह्मण पुत्र एवं गुरु पुत्र हो जाने से क्षमा कर दिया और दया को अपनाया, इसलिए भगवान की वह कृपा पात्र बनी रही।
उन्होंने कहा कि जीवन के प्रत्येक क्षण में भगवान का स्मरण बना रहना चाहिए, तभी जीवनयात्रा की सफलता संभव है। दुःखों में ही भगवान को याद करने और सुखों में भूल जाने की प्रवृत्ति ही वह कारक है, जिसकी वजह से आत्मीय आनंद छीन जाता है। कुंती ने इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण से मांगा कि जीवन में सदैव दुःख ही दुःख मिले, ताकि भगवान का स्मरण दिन-रात बना रहे। महंतश्री ने कहा कि 'पापियों के संग मुफ्त में खाने-पीने से लेकर सारी सुविधाएं तक अच्छी लगती हैं, लेकिन जीवन के लक्ष्य से मनुष्य भटक जाता है और यह विवेक तब जगता है जब संसार से विदा होने का समय आता है। इसलिए अभी से सचेत हो जाओ और दुष्टों-पापियों से दूर रहकर अच्छे काम करो, ईश्वर का चिंतन करो।'
मुस्कान का भी दान दीजिए : दानकई तरह के होते हैं। अभयदान और ज्ञानदान की तरह मुस्कान दान भी देना चाहिए। इसका अच्छा असर यह होता है कि सामने से भी मुस्कान मिलेगी। इसी तरह, बढ़िया वातावरण बनाने का दान भी करना चाहिए। अपनों का कभी अपमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसका बीज कांटे लेकर आता है। उन्होंने नीति को जीवन में जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि बिना नीति घर-व्यापार, राज कुछ नहीं चलता। नीति से जीवन जीने पर तो अधिक धन भी नहीं चाहिए।
कथामें गौसंत रघुवीरदास महाराज का भी सानिध्य रहा
इसके साथ ध्रुव चरित्र पृथु चरित्र, जड़ भरत चरित्र अजामिल उपाख्यान, प्रहलाद चरित्र, नृसिंह अवतार आदि प्रसंग सुनाए गए। इसके साथ ही शाम 4 बजे भगवान को भोग एवं उसके बाद भागवत की आरती उतारी गई एवं प्रसाद वितरण किया गया।





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