Wednesday, July 13, 2016

सत्य ही धारण करने योग्य: महंत हरिओमदास- द्वितीय दिवस भागवत कथा

सत्य ही धारण करने योग्य: महंत हरिओमदास
द्वितीय दिवस भागवत कथा
श्रीमद् भागवत स्वयं से मिलने का अवसर प्रदान करती है । इसमें अंतहीन घटनाएं पिरोई हुई हैं । ये प्रवचन बाँसवाड़ा के ऐतिहासिक लालीवाव मठ में जारी श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन श्रीमहंत हरिओमदासजी महाराज ने दिए । उन्होंने घटनात्मक, स्तुति प्रधान, गीत प्रधान और उपदेशात्मक ग्रंथ बताते हुए कहा कि भागवत कथा चैतन्य एवं एकाग्रता से सुननी चाहिए ।
सत्य को धारण करने योग्य बताते हुए उन्होंने कहा कि जगत की हर वस्तु में पल-पल परिवर्तन होता है । विभिन्न प्रसंगों का जिक्र करते हुए सत्य की साधना का आह्वान किया । कथावाचक महंत न कहा कि व्यक्ति का अपने आस-पास बिना किसी को कहे और बताए सीमा रेखा खींचनी चाहिए ।
यह है कंजूस युग
कथावाचक ने कहा कि यह कंजूस युग है । इसमें ऐसा धन नहीं आए जो मतभेद और मनभेद कर दें । अपनों को अलग कर दे ।
मांस खाने से नहीं मिल पाती भगवान की कृपा
भजन करना है तो भोजन करना सीखना जरुरी है, क्योंकि भोजन का सीधा फर्क मनुष्य की सोच पर पड़ता है । लोग जैसा भोजन करते हैं उनकी सोच वैसी ही  हो जाती है, अगर कोई दूषित भोजन करता है तो उसके मन में धार्मिक ख्याल आना काफी मुश्किल होता है । मांस खाने से भगवान की कृपा से वंचित हो जाते हैं । यह बात श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक महामण्डलेश्वर हरिओमदास महाराज ने कही । भजन तभी होता है जब भोजन ठीक होता है । लोग धीरे-धीेरे सादे भोजन के महत्व को भूलते जा रहे हैं, वे फास्ट फूड और पश्चिमी जीवन शैली को ही अपने जीवन में उतार चुके हैं । ऐसी स्थिति में वे न चाह कर भी भगवान से दूर होते जा रहे हैं । साधना करने से भगवान की कृपा होना जरुरी होता है और जब हम जीवन हत्या करके उनका मांस खाते हैं तो हमारा मन तो दूषित होता ही है । साथ ही भगवान की कृपा भी नहीं मिल पाती ।
कथा के आरंभ में श्री मांगीलालजी धाकड़, महेश राणा, राजूजी, श्री मुन्नाजी नेमा, लोकेन्द्रजी भट्ट, श्रीमती कैलाश कुंवर, श्रीमती लक्ष्मी कंवर, नरेशजी सोनी आदि भक्तों ने भागवत की पूजा की तथा व्यासपीठ का स्वागत, आरती व पार्थिव शिव पूजन किया गया ।
धन कमाने से मिलता है केवल वैभव पर शांति नहीं ।
महत्व ईश्वर तक पहुचने का मार्ग है धम्र का पालन अर्थात धर्म के अने रुप होते है जैस भुखे को भोजन करवाना, निर्धन पर दया रखना, देश सेवा करना, ईश्वर की आराधना करना आदि श्री महाराज आगे कहते है कि धन कमाने से वैभव तो मिल सकता है लेकिन शांति नहीं मिलती आदमी कितना भी धन क्यों न कमा ले लेकिन उसे पूर्ण शांति नहीं मिलती, शांति पाने के लिये मानव को ईश्वर की शरण मे जाना ही पड़ता है वही ऐसा स्थान है जहां व्यक्ति की सभी आवश्यकताएं पूरी हो जाती है कुछ शेष नहीं रह जाता है ।


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